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नपा॑ता॒ शव॑सो म॒हः सू॒नू दक्ष॑स्य सु॒क्रतू॑ । सृ॒प्रदा॑नू इ॒षो वास्त्वधि॑ क्षितः ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

napātā śavaso mahaḥ sūnū dakṣasya sukratū | sṛpradānū iṣo vāstv adhi kṣitaḥ ||

पद पाठ

नपा॑ता । शव॑सः । म॒हः । सू॒नू इति॑ । दक्ष॑स्य । सु॒क्रतू॒ इति॑ सु॒ऽक्रतू॑ । सृ॒प्रदा॑नू॒ इति॑ सृ॒प्रऽदा॑नू । इ॒षः । वास्तु॑ । अधि॑ । क्षि॒तः॒ ॥ ८.२५.५

ऋग्वेद » मण्डल:8» सूक्त:25» मन्त्र:5 | अष्टक:6» अध्याय:2» वर्ग:21» मन्त्र:5 | मण्डल:8» अनुवाक:4» मन्त्र:5


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शिव शंकर शर्मा

पुनः उसी को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - पुनः वे ब्राह्मणप्रतिनिधि मित्र और राजप्रतिनिधि वरुण कैसे हों, (महः+शवसः+नपाता) महान् बल के पोषक (दक्षस्य+सूनू) परमवेग के पुत्र (सुक्रतू) शोभनकर्मा और (सृप्रदानू) जिनके धनादि दान सर्वत्र फैले हुए हैं, ऐसे मित्र और वरुण (इषः+वास्तु) धन के भवन में (अधिक्षितः) निवास करें अर्थात् वे सर्वगुणसम्पन्न हों ॥५॥
भावार्थभाषाः - वे दोनों सब प्रकार के धनों के स्वामी हों और जगत् में बल वीर्य सत्यता आदि गुणों को बढ़ाया करें ॥५॥
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शिव शंकर शर्मा

पुनस्तमर्थमाह।

पदार्थान्वयभाषाः - पुनस्तौ कीदृशौ। महः=महतः। शवसः=बलस्य। नपाता=नपातौ=न पातयितारौ। पोषकावित्यर्थः। दक्षस्य=बलस्य। सूनू=पुत्रौ। सुक्रतू=शोभनकर्माणौ। सृप्रदानू=प्रसृतधनादिदानौ। ईदृशौ मित्रावरुणौ। इषोऽन्नस्य। वास्तु=निवासस्थाने। अधिक्षितः=निवसतः ॥५॥